संदीप कुमार सिंह
भगवान राम के चारू चररत्र के चतेरे महाकचव तुलसीदासजी ने अपने व्यक्तित्व को राम में ऐसा रमा चदया है चक उन शेष भि कचवयोों की ओर हमारा ध्यान ही नहीों जा पाता चजन्ोोंने भगवान राम को ही इष्ट देव मान कर उन्ें अपने काव्य का आलोंबन बनाया है। यचद ऐसे कचवयोों की सूची बनाई जाय तो वह शतार्धक होगी जो राम के बनकर ही चजये परन्तु न तो साचहत्य के इचतहास में ही उन्ें स्थान चमला और न जनता ही उनके हृदय से चनकले सरस उद्गारोों से अपना तादात्म्य स्थाचपत कर पाई। यह ठीक है चक महाकचव तुलसी साचहत्याकाश के चन्द्रमा हैं और उनके काव्यामृत को चख लेने के बाद चिर कुछ और प्राप्त करने की लालसा नहीों रहती, परन्तु चन्द्रमा की शोभा को तारामोंडल सदा चिगार्धत करता है। इसचलए उन कचवयोों का भी अपना महत्व है चजन्ोोंने भगवान राम के चारू चररत्र को चार चााँद लगाने में अपना योगदान चदया है। यहााँ हम ऐसे कुछ कचवयोों की सोंचिप्त चचाध करना चाहते हैं।
रामजन्म के एक ऐसे ही बर्ाई-गायकोों में रतन हरी जी का नाम उल्लेखनीय है। रतन-हरी पर सूरदास और अष्टछाप के कचवयोों का अचर्क प्रभाव प्रतीत होता है। इन्ोोंने रामजन्मोत्सव में ढाढा-ढाचढयोों के आगमन, नृत्य और आशीवाधद कथन का उल्लेख अष्टछावनी परोंपरा के अनुरूप ही चकया है। रामजन्म का समाचार सुनकर ढॉढी अपनी ढॉचढन से राजा दशरथ के यहााँ चलने का अनुरोर् योों करता है –
ढाचढन चल दशरथ घर जाइये।
ढाढी कहै सुनो मेरी प्यारी,
जहााँ सकल चसचर् पाइये।
कोंचन, बसन, रतन, भूषर्र्न, अनचगन असन अर्ाइये
रतन-हरी प्रभुराम जनम की, चवमल बर्ाई गाइये।।
इस प्रकार ढाढी रूप में जब कचव दशरथ जी के िार पर पहाँचता है तो राम को पालने में झूलता देखकर वह अपने नेत्रोों का िल पा लेता है और तब दह महारज दशरथ से कहता है –
हो तो रघुवोंचशन को ढाढी।
सुन दशरथ सुत जन्म दूरते आयौ आसा बाढी।
तुमरी ही यश गाऊाँ, जहााँ जाऊाँ पूछौ दुचनयााँ ढाढी ।
रतन ही मेरो नाम, राम की लेहाँ बलैयाों गाढी।
इस भााँचत रतन-हरी भी राजा दशरथ से कुछ वैसी ही भाषा में बोलते हैं जैसे सूरदास दृष्ण जन्म के अवसर पर नन्द जी के िार पर ढाढी बनकर बोले थे। उन्ोोंने कहा था “हौों तौ तेरे घर कौों ढाढी सूरदास मेरौ नाऊाँ।’ यही नहीों रतनहारी चलले समय कौचशल्या के पुत्र को आशीष भी उसी ढोंग से देते हैं। वे कहते हैं –
कौचशल्या मैया चचरजीबौ तेरी छौना।
राज समाज सकल सुख सपचि अचर्क अचर्क चनत होना ।।
मनी जनध्यान र्रत चनचसवासा, अचर्क जन्म पर मौना।
रतनहरी प्रभु चत्रभुवन नायक, तैं कर चलयो क्तखलौना।।
देख सखी चसर पाग राम के कैसी सोही है।
मकधत चगरर वै चन्द्र चाह चपला जनु मोही है।।
बच़ि बच़ि भुजा चबसाल, चवभुषर् लाक्तख तृर् तोरी है।
सुन्दर नयन चवसाल, वदन पर हॉसी थोरी है।।
उर मोचतयन की माल, कान गल कुोंडल जोरी है।
नाचभ गोंभीर उदर चत्रवली लाक्तख शरद बौरी है।।
पीताम्बर की कछनी काछे पीत चपछौरी है।
रामगुलाम अनूप रूपलाक्तख मचत मेरी थोरी है।।
राम के रूप सौन्दयध के साथ रामभि कचवयोों ने माता जानकी के सौन्दयध के अोंकन में भी कोई कोर कसर नहीों रखी है। ‘भि माल’ के रचचयता नामादास जी ने माता सीता की चाल और सौन्दयध का वर्धन योों चकया है –
ठुमचक ठुमचक चलत चाल जनक नक्तन्दनी।
मर्ुर बचन तो तरे श्रयताप मोचनी।।
सोहत नव नील बसन, मन्द हास रूचचर दसन
झलकत डर माल सकल देववाोंचदनी।
नूपुर पगबजत मानोों, सामवेद करत गान
िुद्रर्र सचचरनाद डर अनक्तन्दनी।
जगत मात सक्तखन सोंग, चबहरत बहकरत रोंग,
अग्रदास चनरखत छचव भवचनकोंदनी।।
अग्रदास जी के राम काव्य में जहााँ कोमल भावोों और सौन्दयध का सुन्दर चचत्राोंकन हैं वही युद्ध वर्धन में उनकी भाषा का आज भी दशधनीय हो जाता है। भि की एक झााँकी उन्ीों के शब्ोों में इस प्रकार है –
अब देखो राम ध्वजा िहरानी।
हलकत ढाल िरक्कत ने जा गरद उठी असमानी।
लक्ष्मर् वीर बाल सुत अोंगद हनूमान अगवानी।
कहत मन्दोदरी सुन चपय रावर् कौन कुमचत चसय आनी।
परन्तु भगवान राम के तुलसी जैसे प्रबोंर्ामक क चररत्र-वर्धन का इन काचवयोों में अभाव है। इनकी वृचि प्रायः श्री राम के सौन्दयध, उनके अोंगार, उनकी कृपालुता और उनकी सुकुमाररता के वर्धन में ही अचर्क रमी है जो इनके स्फुट पदोों में प्रकट होती है। कुछ कचवयोों ने भगवान राम की चदनचयाध का भी वर्धन चकया है –
प्रातः समय उटी जनकनक्तन्दनी चत्रमुवनाथ जगावै।
उठौनाथ यमनाथ प्रार्यचत भूपचत भवन बुलावै।।
उरकीमाल गले मोचतयन की, कर कोंडुन सुरगावै।
पूोंपरचारी अलके िलके पान के पेच सोंवारौ।।
कमलनयन मुखचनराक्तखराम को आनोंद डर न समावैं।
कान्रदाम आस रघुवर की, हरख चनराक्तख गर् गावै।।
इस प्रकार भगवान राम के इन गुर् गायक कचवयोों ने भी अपनी प्रचतभा के स्फुट मुगन राम के चरर्ारचवन्दोों में ब़िी श्रद्धा से बढाये हैं। गम काव्य के इन चतुर चबतर कचदयोों को ओर भगवान राम की पावन जयोंती पर तो हमारा ध्यान जाना ही चाचहए। हम भगवान राम और उनकी गौरव गररमा के गायक इन सभी कचव पगदो को प्रर्ाम करते हैं।
संदीप सिंह, युवा पत्रकार तथा ससम्स मीडिया स्कूल नैनीताल (SIMS) के सहायक निर्देशक हैं। वह हिंदी एलाइन से भी जुडे हुए हैं।