किसानों के आंदोलन पर पूर्व वैज्ञानिक और कवि गौहर रज़ा ने एक खास नज़्म लिखी है।
तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो
अब ये सैलाब हैं
और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं
ये जो सड़कों पे हैं
ख़ुदकशी का चलन छोड़ कर आए हैं
बेड़ियां पाओं की तोड़ कर आए हैं
सोंधी ख़ुशबू की सब ने क़सम खाई है
और खेतों से वादा किया है के अब
जीत होगी तभी लौट कर आएंगे
अब जो आ ही गए हैं तो यह भी सुनो
झूठे वादों से ये टलने वाले नहीं
तुम से पहले भी जाबिर कई आए थे
तुम से पहले भी शातिर कई आए थे
तुम से पहले भी ताजिर कई आए थे
तुम से पहले भी रहज़न कई आए थे
जिन की कोशिश रही
सारे खेतों का कुंदन, बिना दाम के
अपने आकाओं के नाम गिरवी रखें
उन की क़िस्मत में भी हार ही हार थी
और तुम्हारा मुक़द्दर भी बस हार है
तुम जो गद्दी पे बैठे, ख़ुदा बन गए
तुम ने सोचा के तुम आज भगवान हो
तुम को किस ने दिया था ये हक़,
खून से सब की क़िस्मत लिखो, और लिखते रहो
गर जमीं पर ख़ुदा है, कहीं भी कोई
तो वो दहक़ान है,
है वही देवता, वो ही भगवान है
और वही देवता,
अपने खेतों के मंदिर की दहलीज़ को छोड़ कर
आज सड़कों पे है
सर-ब-कफ़, अपने हाथों में परचम लिए
सारी तहज़ीब-ए-इंसान का वारिस है जो
आज सड़कों पे है
हाकिमों जान लो। तानाशाहों सुनो
अपनी क़िस्मत लिखेगा वो सड़कों पे अब
काले क़ानून का जो कफ़न लाए हो
धज्जियाँ उस की बिखरी हैं चारों तरफ़
इन्हीं टुकड़ों को रंग कर धनक रंग में
आने वाले जमाने का इतिहास भी
शाहराहों पे ही अब लिखा जाएगा।
तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो
अब ये सैलाब हैं
और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं
डॉ. गौहर रजा, जानेमाने फिल्म निर्माता और शायर हैं।